National Education Day 2025: भारत हर साल 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (National Education Day) मनाता है। यह दिन भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को समर्पित है, जिनकी दूरदर्शी सोच ने आधुनिक भारतीय शिक्षा की नींव रखी। इस लेख में हम जानेंगे कि राष्ट्रीय शिक्षा दिवस क्यों मनाया जाता है, इसका इतिहास क्या है, मौलाना आज़ाद का शिक्षा क्षेत्र में योगदान क्या रहा, और आज के समय में इस दिन का महत्व क्यों और बढ़ गया है। यह लेख शिक्षा को सिर्फ एक नीति नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी और अवसर के रूप में देखने का भाव प्रस्तुत करता है।
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का महत्व (National Education Day 2025)
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भारत की शिक्षा यात्रा का प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि शिक्षा केवल डिग्री पाने का साधन नहीं, बल्कि समान अवसर, आत्मनिर्भरता और सामाजिक परिवर्तन का आधार है। मौलाना आज़ाद का मानना था कि हर बच्चे को पढ़ने का अधिकार मिलना चाहिए और हर नागरिक को सीखने का अवसर मिलना जरूरी है।
2008 में भारत सरकार ने उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इसका उद्देश्य किसी छुट्टी को बढ़ाना नहीं, बल्कि हर स्कूल और कॉलेज में सीखने की भावना को जगाना था।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: शिक्षा के सच्चे वास्तुकार
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को हुआ था। वे एक विद्वान, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने आज़ाद भारत में शिक्षा को विकास की कुंजी के रूप में देखा। जब वे आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने, उस समय देश में साक्षरता दर बेहद कम थी।
उन्होंने एक ऐसा भारत बनाने की कल्पना की जहाँ हर बच्चा स्कूल जा सके, हर महिला को शिक्षा का अधिकार मिले, और हर व्यक्ति ज्ञान के माध्यम से अपनी नियति बदल सके। उनका विश्वास था — “शिक्षा सिर्फ नौकरी पाने का साधन नहीं, बल्कि इंसान को सोचने, समझने और समाज को बदलने की ताकत देती है।”
आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की नींव रखी मौलाना आज़ाद ने
आज भारत जिन शिक्षा संस्थानों पर गर्व करता है — जैसे IITs, UGC, AICTE, CSIR, और ICCR, ये सब मौलाना आज़ाद की सोच के परिणाम हैं। उन्होंने उच्च शिक्षा को संस्थागत ढांचे में लाने की दिशा में ठोस कदम उठाए।
सिर्फ विज्ञान ही नहीं, उन्होंने कला और संस्कृति के विकास के लिए भी साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी जैसी संस्थाओं की स्थापना की। उनके अनुसार, शिक्षा केवल विज्ञान और तकनीक तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह मानवता और संस्कृति की आत्मा को भी पोषित करे।
समानता और शिक्षा का संगम
मौलाना आज़ाद ने शिक्षा में समानता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, ग्रामीण साक्षरता, और वयस्क शिक्षा के लिए अनेक योजनाएँ शुरू कीं। उनका मानना था कि जब तक समाज का हर वर्ग शिक्षित नहीं होगा, तब तक राष्ट्र की स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।
उनके नेतृत्व में प्राथमिक शिक्षा को मुफ़्त और अनिवार्य बनाने की दिशा में पहल हुई, जिसने आने वाले दशकों में भारत की शिक्षा व्यवस्था की दिशा तय की।
देशभर में ऐसे मनाया जाता है राष्ट्रीय शिक्षा दिवस
देश के सभी स्कूलों और कॉलेजों में इस दिन को शिक्षा की आत्मा को याद करने के रूप में मनाया जाता है। विद्यार्थी निबंध लेखन, भाषण और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं। कई संस्थान “शिक्षा प्रतिज्ञा दीवार” बनाते हैं, जहाँ छात्र अपनी शिक्षा से जुड़ी प्रतिज्ञा लिखते हैं।
कई जगहों पर शिक्षक और अभिभावक अपने अनुभव साझा करते हैं कि शिक्षा ने उनके जीवन को कैसे बदला। यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि सीखने की निरंतर यात्रा की याद है — एक ऐसी यात्रा जो पीढ़ियों को जोड़ती है।
मौलाना आज़ाद की विरासत आज भी जीवित है
मौलाना आज़ाद को 1992 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। लेकिन उनकी असली विरासत किसी पुरस्कार में नहीं, बल्कि हर उस छात्र की आँखों में बसती है जो सीखने का सपना देखता है।
आज जब हम डिजिटल युग में शिक्षा की नई परिभाषा लिख रहे हैं, तब भी मौलाना आज़ाद का संदेश प्रासंगिक है — “शिक्षा केवल आगे बढ़ने का मार्ग नहीं, बल्कि एक साझा जिम्मेदारी है।”
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हर बच्चे को सीखने, बढ़ने और अपने भविष्य को संवारने का अवसर मिलना चाहिए, यही हमारे राष्ट्र की सच्ची प्रगति है।