जिस बेटे के लिए पिता ने बेचे सारे रिक्शे वही बना IAS अधिकारी, पढ़िए गोविंद जायसवाल की भावुक कहानी

 IAS: आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जो यह साबित करती है कि अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी मुश्किल मंज़िल दूर नहीं रहती। ये कहानी है गोविंद जायसवाल की, जो कभी गरीबी और संघर्ष से जूझ रहे थे लेकिन आज एक सीनियर IAS अधिकारी हैं। उनकी ये यात्रा सिर्फ प्रेरणा नहीं बल्कि लाखों युवाओं के लिए उम्मीद की किरण है।

गरीबी में बीता बचपन लेकिन सपनों की उड़ान नहीं रुकी
गोविंद जायसवाल का जन्म एक बेहद साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता नारायण जायसवाल रिक्शा चलाते थे और घर की हालत बहुत खराब थी। परिवार के पास इतना भी पैसा नहीं था कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई आसानी से करवा सकें। लेकिन गोविंद ने हालात के आगे हार नहीं मानी। उन्होंने ठान लिया कि वे अपने पिता के संघर्ष को व्यर्थ नहीं जाने देंगे और मेहनत से अपनी जिंदगी बदलेंगे।

फिल्म से मिली जिंदगी की प्रेरणा

कहते हैं कि कभी-कभी एक छोटी सी बात इंसान की पूरी सोच बदल देती है। गोविंद के साथ भी ऐसा ही हुआ जब उन्होंने फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ देखी। फिल्म में दिखाई गई कहानी ने उनके दिल पर गहरा असर छोड़ा और उन्होंने तय किया कि वो भी एक दिन IAS अधिकारी बनेंगे। उस दिन से उन्होंने अपनी जिंदगी का एक ही लक्ष्य तय कर लिया था—UPSC पास करना।

मां के निधन ने तोड़ा लेकिन पिता बने सबसे बड़ी ताकत
गोविंद के जीवन में 1995 का साल बहुत मुश्किलों भरा था जब उनकी मां का निधन हो गया। ये उनके लिए बहुत बड़ा झटका था। लेकिन उनके पिता ने बेटे को टूटने नहीं दिया। उन्होंने बेटे के सपने को साकार करने के लिए खुद की जिंदगी दांव पर लगा दी। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उन्होंने बेटे की पढ़ाई में कभी कमी नहीं आने दी।

पिता ने बेचे रिक्शे ताकि बेटा IAS बन सके
गोविंद के पिता के पास कुछ रिक्शे थे जिन्हें वो किराये पर देते थे। लेकिन जब बेटे को दिल्ली भेजने की जरूरत पड़ी तो उन्होंने एक-एक करके सारे रिक्शे बेच दिए। आखिर में वो खुद एक रिक्शा लेकर चलाने लगे ताकि बेटे की पढ़ाई जारी रह सके। ये बलिदान ही था जिसने गोविंद को भीतर से मजबूत बना दिया। उन्होंने 2006 में अपने पहले ही प्रयास में UPSC परीक्षा पास कर ली और देशभर में 48वीं रैंक हासिल कर IAS अधिकारी बन गए।

आज सीनियर IAS अधिकारी बनकर कर रहे हैं देश की सेवा
IAS अधिकारी बनने के बाद गोविंद जायसवाल ने कई अहम पदों पर काम किया। उन्होंने नागालैंड में असिस्टेंट कमिश्नर, गोवा में स्पोर्ट्स एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, स्वास्थ्य मंत्रालय में डिप्टी सचिव और शिक्षा मंत्रालय में भी अपनी सेवाएं दी हैं। आज वे उस मुकाम पर हैं जहां से उन्होंने न केवल अपने पिता का सपना पूरा किया बल्कि लाखों युवाओं को यह सिखाया कि सफलता पैसे से नहीं बल्कि हौसले से मिलती है।

गोविंद जायसवाल की कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो हालातों से हार मान चुका है। गरीबी ने उन्हें कभी रोक नहीं पाया क्योंकि उनके इरादे अमीर थे। अगर आप भी अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहते हैं तो गोविंद की यह कहानी याद रखिए—कठिन रास्ते ही मंज़िल तक पहुंचाते हैं।

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